सांध्य - बेला

एक वर्ष चल गया किसी का दुख न बांटा |
 दीप्ति काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा ||
एक कदम उठ गया मौत की मंजिल पानें |
एक लहर उठ चली काल की प्यास बुझानें ||
एक पृष्ठ बह गया प्रलय की जलधारा में |
एक गीत घिर गया गद्य की घनकारा में ||
त्याग पुष्प झड़ गया शेष ममता का काँटा |
एक वर्ष चल गया किसी का दुख न बांटा ||
जीवन सरिता नित प्रति बहती ही रहती है |
स्वत्व -समर्पण की गाथा कहती रहती है ||
पर आकंठ समर्पण -सुरसरि वही नहाते |
आत्माहुति दे जीवन न्योछावर  कर जाते ||
भास्कर का क्या अर्थ न यदि घन दुःख -तम छांटा |
एक वर्ष चल गया किसी का दुख न बांटा ||
ज़रा मरण का चक्र सनातन ही चलता है |
प्राण -दीप पर सदा मृत्यु मुख में पलता है ||
कुछ पैरों में थिरकन लाओ ,अधरों पर मुस्कानें |
कुछ आँखों से आँसू तोड़ो स्वर में भर दो गानें ||
युग वरेण्य नर -पुंगव जिसनें जन मन अन्तर पाटा |
एक वर्ष चल गया किसी का दुख न बांटा ||
प्रतिपल प्रतिक्षण बाहु युग्म में भर भर तमस हटाओ  |
मृत्युंजय बन हंसो मृत्यु पर जीवन सुरभि लुटाओ ||
हर प्रभात होली बन जाये हर संध्या दीवाली |
हर धमनी में मुखर हो उठे स्वस्थ रक्त की लाली ||
सोंधी महक लिये माटी की फैले बेल विराटा |
एक वर्ष चल गया किसी का दुख न बांटा ||
दीप्ति -काल टल गया व्याप्त नीरव सन्नाटा ||


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